धमतरी। विकासखंड के ग्राम पंचायत सारंगपुरी ने वर्ष 2024-25 में एक ऐसा ऐतिहासिक कदम उठाया, जिसने न केवल गांव को हरियाली से भर दिया स्थानीय महिलाओं के लिए रोजगार, आय और सम्मान का नया मार्ग भी खोल दिया। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और डीएमएफ के अभिसरण से शुरू किया गया मिश्रित वृक्षारोपण कार्य गांव के सामाजिकदृआर्थिक विकास का एक आदर्श मॉडल बन चुका है। यह केवल पेड़ लगाने का कार्य नहीं एक सोच, एक दृष्टिकोण और एक दीर्घकालिक परिवर्तन का सफल उदाहरण है। इस परियोजना ने दिखा दिया कि जब पंचायत, प्रशासन, महिला समूह और समुदाय एकजुट होकर काम करते हैं तब विकास के हर रास्ते स्वतः प्रस्फुटित होने लगते हैं।
वित्तीय वर्ष 2024-25 में ग्राम पंचायत सारंगपुरी में 14.14 लाख रुपये (मनरेगा 6.27 लाख $ डीएमएफ 7.87 लाख) की राशि स्वीकृत हुई। कुल 5.20 एकड़ भूमि पर मिश्रित वृक्षारोपण जिसमें फलदार पौधों के साथ-साथ भूमि सुधार, जल संरक्षण और आय संवर्धन को भी साथ में जोड़ना मुख्य उद्देश्य था। ग्राम पंचायत की सरपंच, सचिव, जनप्रतिनिधियों और स्थानीय समुदाय ने मिलकर तय किया कि यह कार्य केवल वृक्षारोपण तक सीमित नहीं रहेगा इसे आजीविका आधारित मॉडल बनाया जाएगा जिससे गांव की महिलाओं की आय बढ़े और लंबे समय तक इसका लाभ ग्राम समाज को मिलता रहे।
वृक्षारोपण कार्य की जिम्मेदारी ग्राम पंचायत सारंगपुरी को मिली। इसके लिए राधाकृष्णा स्वसहायता समूह को कार्य में सम्मिलित किया गया। 13 सदस्यों वाला यह महिला समूह पहले से ही सक्रिय था परंतु उनके पास स्थाई आय का कोई पुख्ता स्रोत नहीं था। इस कार्य के लिए समूह की महिलाओं ने वृक्षारोपण की प्रक्रिया को गति देना शुरू किया जिसमें भूमि की साफ-सफाई, गड्ढा खुदाई, पौधों की रोपाई, फेंसिंग कार्य, बोरखानन और पानी व्यवस्था जैसे सभी कार्यों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी रही। सरकार द्वारा डीएमएफ मद से फेंसिंग और बोर खनन की व्यवस्था कर दी गई जिससे पौधों का संरक्षण आसान हो गया। इस परियोजना का सबसे महत्वपूर्ण चरण था 840 पौधों की रोपाई। इनमें फलदार पौधों का चयन सोचदृसमझकर किया गया जैसे - आम, अमरूद, नींबू, कटहल, जामुन, सीताफल, करौंदा आदि इस विविधता के कारण यह मिश्रित वृक्षारोपण स्थल आने वाले वर्षों में एक बहु फसली फलोद्यान के रूप में विकसित होगा। इससे समूह को लगातार और लम्बे समय तक आय प्राप्त होगी।
वृक्षारोपण कार्य के बाद महिलाओं ने एक नया प्रयोग शुरू किया जिसमें पौधों के बीच अंतर वाली भूमि पर मौसमी सब्जियों की खेती लगाई भाटा, बरबट्टी, ग्वारफली, गोभी, लौकी, करेला यह नवाचार इस परियोजना की सबसे बड़ी उपलब्धि साबित हुआ। अगस्त 2025 से शुरू हुए सब्जी उत्पादन ने समूह को अब तक लगभग 1.50 लाख रुपये की अतिरिक्त आय दिलाई। स्वसहायता समूह की महिलाएं खुशी से बताती हैं - पहले हम मजदूरी पर निर्भर थे पर अब अपने खेत, अपने पौधे और अपनी सब्जियों से आय कमा रहे हैं। घर चल रहा है। बच्चों की पढ़ाई में मदद मिल रही है और गांव में हमारा सम्मान बढ़ा है। इस आर्थिक उन्नति ने महिलाओं में आत्मविश्वास और सामुदायिक नेतृत्व क्षमता बढ़ाई है। गांव के पर्यावरण पर इसके गहरे और दीर्घकालिक प्रभाव देखे जा रहे हैं। जल संरक्षण में वृद्धि, बोर खनन एवं वृक्षारोपण के कारण, भूमि में नमी बढ़ी, बरसात का पानी जमीन में समाने लगा, आसपास के कुओं और बोर के जलस्तर में सुधार दिख रहा है। पहले यह भूमि बंजर थी और बारिश आते ही मिट्टी बह जाती थी। वृक्षारोपण के बाद जड़ें मिट्टी को बांधने लगी। वर्षा के पानी का कटाव कम हुआ। भूमि उपजाऊता बढ़ी। अतिक्रमण से मुक्ति खाली पड़ी जमीन पर अतिक्रमण का संकट हमेशा रहता है। परंतु अब जब यह क्षेत्र उपयोगी परियोजना में बदल चुका है पूरी भूमि सुरक्षित है। फेंसिंग के कारण कोई बाहरी दखल नहीं, ग्राम पंचायत की संपत्ति संरक्षित ।यह परियोजना भूमि-सुरक्षा का उत्कृष्ट उदाहरण बन गई है।
राधाकृष्णा स्वसहायता समूह की महिलाएं बताती हैं कि पहले वे घर और खेत के छोटे-मोटे कामों तक सीमित थीं। आय का कोई निश्चित साधन नहीं था। आर्थिक संकट से जूझना पड़ता था लेकिन इस परियोजना के बाद उनकी नियमित आमदनी होने लगी बैंक खाते सक्रिय हुए परिवार की आर्थिक स्थिति सुधरी, बच्चों की शिक्षा और पोषण में सुधार आया, निर्णय लेने की क्षमता बढ़ी, गांव में उनका सम्मान बढ़ा। समूह की एक सदस्य कहती हैं हमने कभी सोचा नहीं था कि पौधे और सब्जियां हमें इतना कुछ दे सकती हैं। अब हम सब मिलकर आगे और भी काम करना चाहते हैं।
इस परियोजना को सफल बनाने में पंचायत का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। सरपंच और सचिव ने योजना को सही दिशा दी। महिला समूह को हर कदम पर मार्गदर्शन मिला।डीएमएफ और मनरेगा का समुचित उपयोग हुआ। तकनीकी अधिकारियों ने पौधों की चयन से लेकर संरक्षण तक मदद की। निरंतर मॉनिटरिंग से पौधों का जीवित रहना सुनिश्चित किया गया। यह परियोजना राज्य के अन्य पंचायतों के लिए भी अनुकरणीय बन चुका है। आने वाले वर्षों में आम,अमरूद, नींबू, कटहल, जामुन, सीताफल, करौंदा जैसे पौधों से फल उत्पादन शुरू होगा। इससे स्वसहायता समूह की आय कई गुना बढ़ जाएगी। साथ ही सब्जी उत्पादन लगातार जारी रहेगा। इसके अलावा समूह फल प्रसंस्करण, अचार-मुरब्बा निर्माण, सब्जी पैकिंग, स्थानीय बाजार आपूर्ति जैसे कार्य भी शुरू कर सकती है।
