संपादकीय: किसानों का विश्वास जीतना: कृषक उन्नति योजना की सफलता और चुनौतियाँ



छत्तीसगढ़ में साय सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी और प्रभावशाली पहलों में से एक 'कृषक उन्नति योजना' है। यह योजना सीधे तौर पर 'मोदी की गारंटी' को संबोधित करती है, जिसके तहत किसानों से 3,100 प्रति क्विंटल की दर से प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान खरीदने का वादा किया गया था। यह न केवल एक चुनावी वादा था, बल्कि राज्य की कृषि-अर्थव्यवस्था को सीधे प्रभावित करने वाला एक बड़ा आर्थिक कदम था। अपने क्रियान्वयन के पहले ही वर्ष में इस योजना ने न केवल किसानों के एक बड़े वर्ग का विश्वास जीता है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक नई जान भी फूँकी है। हालाँकि, इस भारी सफलता के बीच भविष्य की चुनौतियों और दीर्घकालिक कृषि रणनीति पर विचार करना भी उतना ही आवश्यक है।

योजना का क्रियान्वयन अपने आप में एक विशाल कवायद थी। सरकार ने एक व्यवहारिक तरीका अपनाते हुए, पहले न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर धान की खरीद की और फिर वादे के अनुसार 3,100 प्रति क्विंटल और MSP के बीच की अंतर राशि, लगभग ₹917 प्रति क्विंटल, को सीधे किसानों के बैंक खातों में हस्तांतरित किया। इस प्रक्रिया के तहत, मार्च 2024 में राज्य के लगभग 24.72 लाख किसानों के खातों में 13,320 करोड़ की भारी-भरकम राशि डाली गई। इसके परिणामस्वरूप, 2023-24 के खरीफ विपणन सत्र में धान की रिकॉर्ड तोड़ 145 लाख मीट्रिक टन से अधिक की खरीद हुई, जो पिछले वर्षों की तुलना में एक बड़ी छलांग है। इन आँकड़ों ने साय सरकार की अपनी प्रमुख गारंटी को पूरा करने की प्रतिबद्धता को मजबूती से स्थापित किया।

इस योजना का तात्कालिक प्रभाव अभूतपूर्व रहा है। ग्रामीण छत्तीसगढ़ के लिए यह एक बड़े आर्थिक पैकेज की तरह था। किसानों के हाथ में आई अतिरिक्त नकदी ने उन्हें साहूकारों के कर्ज चुकाने, बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करने तथा कृषि में पुनः निवेश के लिए बेहतर बीज, खाद और उपकरण खरीदने में सक्षम बनाया। बाजार में बढ़ी हुई तरलता ने स्थानीय व्यापारों को भी गति दी, जिससे ट्रैक्टर-ट्रॉली से लेकर दैनिक उपभोग की वस्तुओं तक की बिक्री में उछाल देखा गया। इस कदम ने निस्संदेह सरकार की राजनीतिक साख को मजबूत किया है और यह संदेश दिया है कि उसकी घोषणाएँ केवल चुनावी जुमले नहीं, बल्कि ठोस धरातल पर लागू होने वाली गारंटी हैं।

लेकिन, जैसा कि हर बड़े आर्थिक हस्तक्षेप के साथ होता है, कृषक उन्नति योजना की राह में भी कुछ स्वाभाविक चुनौतियाँ और चिंताएँ हैं। सबसे बड़ी चुनौती राजकोष पर पड़ने वाला भारी वित्तीय बोझ है। हर साल हजारों करोड़ रुपये की यह सब्सिडी क्या दीर्घकाल में टिकाऊ है? यह एक गंभीर प्रश्न है जिसका समाधान सरकार को खोजना होगा। दूसरी महत्वपूर्ण चिंता धान की फसल पर अत्यधिक जोर देना है। 3,100 प्रति क्विंटल का आकर्षक मूल्य किसानों को अन्य फसलों को छोड़कर केवल धान उगाने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। यह स्थिति फसल विविधीकरण के प्रयासों को कमजोर कर सकती है, जिससे भूमिगत जल स्तर में गिरावट और मिट्टी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने जैसी पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। 'धान के कटोरे' को भविष्य के लिए सुरक्षित रखने हेतु फसल चक्र और विविधीकरण को बढ़ावा देना अनिवार्य है।

इसके अलावा, क्रियान्वयन से जुड़ी कुछ व्यावहारिक कठिनाइयाँ भी सामने आई हैं। कई खरीद केंद्रों पर समय पर धान का उठाव न होने से बारिश में उसके भीगने और खराब होने की खबरें आईं। विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि खरीद के आँकड़े अनुमानित उत्पादन से अधिक हैं, जो पड़ोसी राज्यों से अवैध धान की आवक का संकेत हो सकता है। इन सबसे महत्वपूर्ण, रेगहा और बटाई पर खेती करने वाले भूमिहीन किसानों तक इस योजना का लाभ पूरी तरह न पहुँच पाना एक बड़ी सामाजिक चुनौती है, क्योंकि वे अक्सर प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजनाओं से बाहर रह जाते हैं।

इन चुनौतियों को समझते हुए, सरकार द्वारा हाल ही में योजना के दायरे को बढ़ाने का संकेत एक स्वागत योग्य कदम है। यह सराहनीय है कि धान के अलावा दलहन, तिलहन और अन्य मिलेट फसलों को प्रोत्साहित करने के लिए भी आदान सहायता देने पर विचार किया जा रहा है। यही आगे का सही रास्ता है। कृषक उन्नति योजना की वास्तविक सफलता केवल धान किसानों को तत्काल राहत देने में नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की कृषि को एक समग्र और टिकाऊ भविष्य की ओर ले जाने में निहित है।

कृषक उन्नति योजना ने अपने पहले ही वर्ष में किसानों का विश्वास जीतने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने का अपना प्राथमिक उद्देश्य सफलतापूर्वक पूरा किया है। यह 'मोदी की गारंटी' को जमीन पर उतारने का एक सशक्त उदाहरण है। अब सरकार के लिए चुनौती इस तात्कालिक सफलता को एक स्थायी कृषि विकास मॉडल में बदलने की है। इसके लिए वित्तीय अनुशासन, फसल विविधीकरण के लिए ठोस प्रोत्साहन, सिंचाई और भंडारण जैसे बुनियादी ढाँचे का विकास, और यह सुनिश्चित करना कि लाभ सबसे छोटे और भूमिहीन किसानों तक भी पहुँचे, अत्यंत आवश्यक होगा। यह योजना एक बेहतरीन शुरुआत है, लेकिन मंजिल अभी दूर है - एक ऐसा आत्मनिर्भर और समृद्ध कृषि क्षेत्र बनाना जो हर मौसम और हर चुनौती का सामना करने में सक्षम हो।

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